RANCHI : *सारंडा की लड़ाई आदिवासियों मूलवासियों की आत्मा और अस्तित्व की जंग है | यह सांस्कृतिक और आर्थिक नरसंहार है हेमंत सरकार इस विषय को गम्भीरता से ले अन्यथा गंभीर परिणाम हो सकते है - विजय शंकर नायक*

RANCHI : *सारंडा की लड़ाई आदिवासियों मूलवासियों  की आत्मा और अस्तित्व की जंग है | यह सांस्कृतिक और आर्थिक  नरसंहार है हेमंत सरकार इस विषय को गम्भीरता से ले अन्यथा गंभीर परिणाम हो सकते है  -  विजय शंकर नायक* 


रांची, झारखंड। 

आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व विधायक प्रत्याशी श्री विजय शंकर नायक ने सारंडा जंगल को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने के फैसले पर कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने इसे "आदिवासियों की मां की गोद पर कब्जा और आत्मा का अपहरण" करार देते हुए हेमंत सरकार और सुप्रीम कोर्ट को चेतावनी दी है।  

सारंडा, एशिया का सबसे विशाल सागवान वन, हो, मुंडा, उरांव जैसे आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक धड़कन है। सुप्रीम कोर्ट के 8 अक्टूबर 2025 के आदेश और झारखंड कैबिनेट के 14 अक्टूबर के फैसले से 31,486 हेक्टेयर क्षेत्र को अभयारण्य बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई, जिससे 50 राजस्व गांवों और 10 वन गांवों में रहने वाले 1 लाख से अधिक आदिवासियों की आजीविका, संस्कृति और धार्मिक स्थल खतरे में हैं।  

श्री नायक ने कहा कि अभयारण्य से गैर-काष्ठ वन उत्पादों (महुआ, तेंदू, शहद) पर प्रतिबंध लगेगा, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था का 40% हिस्सा हैं। इससे भुखमरी, बेरोजगारी और सांस्कृतिक नरसंहार का खतरा है। खनन बंदी से 10,000+ नौकरियां खत्म होंगी, जबकि इको-टूरिज्म का लाभ बाहरी कॉरपोरेट्स को मिलेगा। वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के 70% दावे लंबित हैं और ग्राम सभाओं की सहमति को अनदेखा किया गया। सरना धर्म के पवित्र स्थल दुर्गम हो जाएंगे, जिससे 26% आदिवासियों की आस्था खतरे में है।  

महिलाओं की पारंपरिक 'होड़ोपौथी' चिकित्सा और जंगल आधारित आजीविका पर संकट गहराएगा, जिससे मातृत्व मृत्यु दर 20% बढ़ सकती है। बेरोजगारी से नक्सलवाद को बढ़ावा मिलेगा। श्री नायक ने मांग की कि अभयारण्य घोषणा रोकी जाए, सभी 60 ग्राम सभाओं की सहमति ली जाए, FRA के तहत सामुदायिक वन प्रबंधन लागू हो, और महिलाओं-युवाओं के लिए हर्बल उद्योग व स्वास्थ्य केंद्र शुरू हों।  

मंच 25 अक्टूबर को आर्थिक नाकेबंदी का समर्थन करेगा और आदिवासी अधिकारों के लिए देशव्यापी जागरण शुरू करेगा। 




By Madhu Sinha 



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