PALAMU : हम आदिवासियों की हुंकार नहीं लेने देगे अपना हक अधिकार - आदिवासी बचाओ संघर्ष समिति।

PALAMU : हम आदिवासियों की हुंकार नहीं लेने देगे अपना हक अधिकार - आदिवासी बचाओ संघर्ष समिति। 

पलामू, झारखंड  । 

राज्य के वर्तमान ज्वलंत मुद्दे कुडमी, कुरमी को जनजातीय सूची में शामिल होने के मांग के विरोध में पलामू प्रमंडल स्तरीय [आदिवासी अधिकार बचाओ जन आक्रोश रैली, जनसभा]

(पलामू प्रमंडल स्तरीय पारहा_भयारी पंचायत) आज दिनांक 15 अक्टूबर दिन बुधवार कचहरी परिसर के जिला परिषद के मैदान में आदिवासी अधिकार बचाओ जन आक्रोश रैली झारखंडी  निकाला गया। 


आदिवासी बचाओ संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष आशुतोष सिंह बेरो जी के सानिध्य में पलामू प्रमंडल स्तरीय "पांडा_भयारी_पंचायत नगी जिसमे पलामू प्रमंडल से के विभिन्न गावो से हजारों हजार की सख्या में आदिवासी सामुदाय के लोग शामिल होकर राज्य के ज्वलंत मुद्दे कुरमी कुडमी समाज जो एसटी सूची में शामिल की मांग कर रहे है उसके विरोध में आदिवासी समुदाय जनसभा के माध्यम से राज्य सरकार/ केंद्र सरकार/जिला प्रशासन को ऐ बताना चाहते है कि वर्तमान समय में कुरमी कुड़मी समाज जो असंवैधानिक तरीके से राष्ट्रीय संपति की आय को छती पहुंचा कर (रेल टेका डहर छेका) आन्दोलन कर आदिवासी समुदाय में आराजकता फैलाकर, हमारे आदिवासी पुरखा, इतिहास, सभ्यता संस्कृतिक भाषा, भेष भूसा को नकल कर के जो एसटी सूची में शामिल होना चाहते है जो असंवैधानिक है जिसे हम सभी राज्य एवं पलामू प्रमण्डल के आदिवासी समुदाय बर्दाशत्त नहीं करेगे


उनकी असंवैधानिक मांगो का विरोध करते है और सरकार को बताना चाहते है कि जो कुडमी, कुरमी समाज के पास किसी भी प्रकार का कोई प्रमाण नहीं है जनजातीय सूची में शामिल होने के पहला मापदंड है आदिवासी मां के बोक से जन्म लेना, आदिवासी घर में जन्म लेना, 1965 लोकुर समिती ने ऐ स्पष्ट किया है कि जनजाति सूची में सूचीबद्ध होने के लिऐ लोकुर समिती ने भी निर्धारित पाँच मानदंड का होना आवश्यक है जैसे आदिम लक्षण, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, व्यापक समुदाय के संपर्क ने संकोच, पिछड़ापन, जनजातीय मंत्रालय एंव TRI / कलकत्ता हाईकोर्ट के रिपोर्ट ने भी माना की कुडमी, कुरमी समाज st सूची में शामिल नहीं किया जा सकता कारण जनजातीय सूची में सूचीबद्ध होने के लिऐ स्वय की रूढ़ि प्रथा सामाजिक व्यवस्था, भाषा संस्कृतिक नहीं है एवं 1938 के बिहार टाईबल गजट में भी सूचि में सूचीबद्ध नहीं होना, 1871 के Trible criminal act से कुडमी समाज अपने आप को 163 जनजातीय की सूची से अलग कर लेना एवं 1910 में कुरमी क्षत्रीय महासभा बना कर वर्ण व्यवस्था में अपने आप को वर्शाना ऐ दर्शाता है कि आदिवासी बनने के लिऐ जनजातीय सूची में शामिल होने के लिए किसी भी प्रकार से निर्धारित मानदंडों कुरमी, कुडमी समाज के पास प्रमाण नहीं है, आज के परिवेश में कुडमी समाज एक सम्पन्न समाज में गिने जाते है जो किसी भी प्रकार से पिछडापन नहीं है, राजनीतिक पृष्ठ भूमि शैक्षणिक पृष्ठ भूमि, समाजिक पृष्ठ भूमि में आदिवासी सामुदाय से अलग है हमारी मांग कुरमी कुडमी समाज को आदिवासी सूची में शामिल नही किया जाना चाहिऐ।

आदिवासी अधिकरो बचाओ जन आक्रोस रैली कार्यक्रम में वक्ता के रूप मे प्रदेश से आदिवासी आगुआ शोधकर्ता ग्लैडसन डुंगडुग, केन्द्रीय सारना समिती अध्यक्ष अजय तिर्की, आदिवासी आदिवासी नेता शशि पन्ना , ज्योत्सना केरकेट्टा, गोविंद टोप्पो, शिव उरांव, जय प्रकाश मिंज, अजय सिंह चेरो, अवधेश सिह बेरो, त्रिपुरारी सिह बेरो, रघुपाल सिंह खरवार, दाउद केरकेटा, प्रवीण खरवार, मिथलेस उरांव, केदार सिंह बरवार, रामराज सिंह बेरो, सुमित उराँव, नागमणि रजक, रविपाल, अदित्य तिकीं, बंदु राम।

आदिवासी अधिकार बचाओ आक्रोस रैली मे संवैधानिक अधिकारी को बचाने हेतु रैली में प्रमंडल के विभिन आदिवासी-मूलवासी संगठन का सर्मथन प्राप्त हुई।




By Madhu Sinha

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