RANCHI,JHARKHAND#स्वरोजगार का अनूठा उदाहरण - "जख्मी कपड़ों का अस्पताल" खोलकर जीविकोपार्जन कर रहे हैं सुनील स्वांसी।

 RANCHI,JHARKHAND#स्वरोजगार का अनूठा उदाहरण - "जख्मी कपड़ों का अस्पताल" खोलकर जीविकोपार्जन कर रहे हैं सुनील स्वांसी।

 रांची, झारखंड । 

'जख्मी कपड़ों का अस्पताल'! सुनकर अजीब सा लगता है, लेकिन वास्तव में ऐसा एक चलंत अस्पताल है एचईसी परिसर स्थित जगन्नाथपुर क्षेत्र में। 

 रांची जिला अंतर्गत लापुंग क्षेत्र के निवासी (वर्तमान निवास जगन्नाथपुर, धुर्वा स्थित मौसीबाड़ी) सुनील स्वांसी ने जगन्नाथपुर में जख्मी कपड़ों का चलता फिरता (चलंत) अस्पताल खोला है। 

  सुनील ने बताया कि वह सिर्फ सिलाई खुले हुए  या कटे-फटे कपड़ों (परिधानों) की रिपेयरिंग/फिटिंग का काम करते हैं। साथ ही लोगों की शारीरिक बनावट और ग्राहकों की पसंद के अनुरूप कपड़ों की फिटिंग भी करते हैं। 

इस संबंध में सुनील ने बताया कि इसके पूर्व वह नई दिल्ली के निकट गुड़गांव में अपने एक परिचित के पास रोजगार की तलाश में पहुंचे। वहां उन्हें ब्लैकबेरी कंपनी और ओरिएंट ग्राफ लिमिटेड कंपनी में कपड़ा सिलने का काम मिला। वहां पर उन्होंने कपड़ों की सिलाई का काम सीखा। 

   तत्पश्चात पारिवारिक कारणों से वह  कुछ दिनों बाद अपने गांव लौट आए। 

 कुछ दिनों तक काम की तलाश में घूमे।

 जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने कुली मजदूर का काम शुरू किया। लगभग पांच साल तक मजदूरी का काम करके उन्होंने अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण किया। 

 इस दौरान बढ़ते पारिवारिक खर्च की चिंता उन्हें सताने लगी। उन्होंने मेडिटेशन और योग का सहारा लिया। जीवन से निराश नहीं हुए। मेहनत और ईमानदारी का साथ उन्होंने नहीं छोड़ा। 

 धुर्वा के जगन्नाथपुर स्थित मौसीबाड़ी में उन्होंने अपने एक रिश्तेदार के सहयोग से अपनी पत्नी अंजू देवी सहित तीन पुत्र और एक पुत्री के साथ रहने लगे। इस क्रम में वह एक समाजसेवी सैंका कच्छप के संपर्क में आए। श्री कच्छप ने उनके हुनर को देखते हुए सिलाई कढ़ाई के क्षेत्र में ही आगे बढ़ने के लिए उन्हें प्रेरित किया। उनका नैतिक बल बढ़ाया। श्री कच्छप की प्रेरणा से सुनील ने साइकिल पर सिलाई मशीन रखकर घूम-घूम कर पुराने और कटे-फटे कपड़ों की मरम्मत करने लगे। 

इसी बीच एक स्वयंसेवी संस्था ने भी मेहनत और ईमानदारी के प्रति उनके जज्बे और जुनून को देखते हुए उन्हें सहयोग किया। 

 वर्तमान में सुनील स्वांसी एचईसी परिसर के जगन्नाथपुर मंदिर मार्ग पर सेक्टर 2 के निकट अपने एक पुराने चार पहिया वाहन में सिलाई मशीन व अन्य सामान लेकर जख्मी कपड़ों का चलंत अस्पताल नामक बोर्ड लगाकर जीविकोपार्जन कर रहे हैं।  

 सुनील बताते हैं कि मेहनत और ईमानदारी के बलबूते आदमी हर मुकाम हासिल कर सकता है। ईश्वर द्वारा दिए गए शरीर का सदुपयोग करें और ईमानदारी का साथ कभी न छोड़ें तो सफलता एक न एक दिन जरूर मिलेगी। सुनील ने  इसे सच साबित कर दिखाया है। फिलहाल वे अपने तीन बच्चों को जगन्नाथपुर स्थित योगदा स्कूल व बिरसा शिक्षा निकेतन में पढ़ा रहे हैं। सुनील ने बताया कि सिलाई के काम में उनकी पत्नी अंजू देवी भी भरपूर सहयोग करती है और कंधे से कंधा मिलाकर उन्हें हर परिस्थिति में साथ देती हैं। 

 सुनील के पास पुराने कपड़ों की मरम्मत करने के लिए काफी संख्या में लोग पहुंचने लगे हैं। 'वाजिब दाम और बेहतर काम' के लक्ष्य के साथ सुनील अपने जीवन पथ पर अग्रसर हैं।



 By Madhu Sinha 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ