RANCHI,JHARKHAND#संघर्षपूर्ण जीवन की मिसाल:
*अभावग्रस्त जिंदगी के बावजूद,विषम परिस्थितियों में भी नहीं लड़खड़ाये कदम
*झंझावातों को झेलते हुए अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर हैं अशोक *
*ईमानदारी ही रहा ओढना-बिछौना*
रांची, झारखंड ।कहा जाता है कि कड़ी मेहनत व लगन से हर मुश्किल राहें आसान हो जाती है। कर्मठता और ईमानदारी के साथ जीवन में कुछ बेहतर करने के जज्बे और जुनून से हर जंग जीत सकते हैं। इसे चरितार्थ कर दिखाया है एचईसी परिसर के जेपी मार्केट,धुर्वा निवासी अशोक कुमार साहू ने । श्री साहू जीवन में कई झंझावातों को झेलते हुए विषम परिस्थितियों में भी अपने पारिवारिक दायित्वों का बखूबी निर्वहन करते रहे हैं।
वर्तमान में श्री साहू नगड़ी प्रखंड अंतर्गत बालालौंग पंचायत के होटवासी ग्राम स्थित शिवपुरी (रोड नंबर आठ) में अपने नवनिर्मित आवास में सपरिवार रह रहे हैं। तकरीबन तीस वर्षों तक धुर्वा में किराए के मकान में रहकर संघर्षशील जीवन व्यतीत करते हुए अपने तीन संतानों (सुपुत्रों) को बेहतर और संस्कार युक्त शिक्षा दिलाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। फिलवक्त उनके दो सुपुत्र निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं। वहीं, एक पुत्र व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त कर रहा है।
श्री साहू ने अपने जीवन का साठवां बसंत पार कर लिया है। बचपन से किशोर वय (जवानी) की दहलीज पर कदम रखने के शुरुआती दौर व संघर्षपूर्ण परिस्थितियों का जिक्र करते हुए श्री साहू भावुक हो उठते हैं। अभावग्रस्त जिंदगी जीने के बावजूद जीवन के कई महत्वपूर्ण पड़ावों पर उन्होंने अपनी कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का साथ नहीं छोड़ा। यही नहीं, अपनी कर्मठता और ईमानदारी के बलबूते बंबई (अब मुंबई) जैसे महानगर में निजी क्षेत्र के नियोजकों (बड़े-बड़े उद्यमियों-व्यवसायियों) का दिल जीतने में भी सफल रहे।
फ्लैशबैक में जाकर अपने प्रारंभिक जीवनकाल के पन्नों को पलटते हुए श्री साहू बताते हैं कि रांची के धुर्वा में एशिया प्रसिद्ध कारखाना एचईसी की स्थापना के बाद वर्ष 1960 में उनके पिता महादेव प्रसाद साहू (अब स्वर्गीय) यहां आए।
वर्ष 1962 में एचईसी प्रबंधन द्वारा उन्हें धुर्वा बस स्टैंड के समीप तत्कालीन गौशाला बाजार (वर्तमान नर्सरी मैदान) में एक दुकान आवंटित किया गया। जहां उनके पिताजी फूड ग्रेन, चीनी, किरासन तेल आदि राशन कार्डधारियों के बीच वितरित किया करते थे। वर्ष 1975 में तत्कालीन गौशाला बाजार धुर्वा बस स्टैंड से हटा दिया गया। निकट में ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नाम पर जेपी मार्केट की स्थापना हुई। जेपी मार्केट में उनके पिताजी के नाम दुकान आवंटित किया गया।
चार भाइयों में सबसे बड़े अशोक अपने पिताजी के व्यवसाय में सहयोग किया करते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा तत्कालीन गौशाला बाजार (वर्तमान में धुर्वा बस स्टैंड के समीप नर्सरी) स्थित एक साधारण झोपड़ी स्कूल में हुई। वहां
दूसरे क्लास तक पढ़ाई की। बाद में पिताजी ने डैम साइड स्थित एचईसी के स्कूल में नामांकन कराया, वहां पांचवी तक की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात एचईसी द्वारा संचालित स्कूलों में आठवीं तक की पढ़ाई पूरी की।
इस दौरान वह पिता के व्यवसाय में भी हाथ बंटाया करते थे। पढ़ाई में उनका मन नहीं लगा करता था। इसी बीच धुर्वा निवासी एक सहपाठी ने उन्हें बंबई(मुंबई) की फिल्मी दुनिया में किस्मत आजमाने की बात कही। वह दोस्त के बहकावे में आकर मुंबई चले गए।
दोनों ने कई दिनों तक मुंबई की गलियों में खाक छानी। फांकाकशी में दिन-रात गुजरे। उनके मित्र ने उनका साथ छोड़ कर अन्यत्र कहीं काम पकड़ लिया। अशोक तीन-चार दिनों तक यूं ही भटकते रहे। एक होटल के संचालक ने उनकी मासूमियत देखकर उन्हें काम दिया। तकरीबन ढाई तीन वर्षों तक वह लोगों को चाय पहुंचाने का काम करते रहे। इस बीच उन्होंने अपने पिताजी को पत्र लिखकर वस्तु स्थिति से अवगत कराया। इस दौरान उनकी जान-पहचान फूड ग्रेन और ड्राई फ्रूट्स के एक बड़े व्यवसायी से हो गई। उन्होंने व्यवसायी को अपनी बेबसी बताई। गुजराती व्यवसायी ने अशोक को अपने यहां काम पर रख लिया। अशोक ने अपनी लगन और ईमानदारी से उक्त व्यवसायी का दिल जीत लिया। इस क्रम में अशोक साहू मराठी,गुजराती और कच्छी भाषा भी सीख गए।
मुंबई में रहकर उन्होंने चाय बेची, राशन दुकान व ड्राई फ्रूट्स के दुकान में काम किया। उसके बाद एक एक्सपोर्ट-इंपोर्ट कंपनी में सेल्स मैनेजर के पद तक पहुंचे।
इसी दौरान अशोक वैवाहिक बंधन में भी बंध गए। अपने पिता, पत्नी, भाई समेत अन्य परिजनों को भी मुंबई बुलाकर कुछ दिनों तक अपने साथ रखा। वर्ष 1975 से 1989 (तकरीबन 14 साल) तक वह मुंबई में रहे। इस दौरान अशोक अपने पिताजी, भाई व बच्चों के खर्च के लिए हर महीने मुंबई से मनी ऑर्डर भेजा करते थे। घर से दूर रहकर भी उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं होने दिया।
इसी बीच वर्ष 1990 में महाराष्ट्र में सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़की। वर्ष 1990 में मुंबई में बम कांड की घटना घटी। जिससे भयभीत होकर अशोक अपने परिवार समेत रांची वापस आ गए। रांची (धुर्वा) वापस आने के बाद फिर से अपने पिता के व्यवसाय में सहयोग करने लगे।
यहां घर-परिवार चलाने के लिए मेहनत और ईमानदारी पूर्वक पैसे कमाने की ललक ने उन्हें अन्य संस्थानों में काम करने को प्रेरित किया। श्री साहू शहर के अपर बाजार स्थित श्री श्याम आयुर्वेद में सेल्समैन के रूप में कार्य करने लगे। तत्पश्चात कुछ अनुभव होने पर आयुर्वेदिक कंपनी रैडिक्योरा, रतन आयुर्वेद, हेमपुष्पा आदि कंपनियों में बतौर औषधि प्रतिनिधि के रूप में भी काम किया। इसके बाद रिलायंस फ्रेश में सेल्समैन के रूप में सेवाएं दी।
अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों को निभाने और बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए आर्थिक तंगी के दौर से भी उन्हें गुजरना पड़ा। अशोक बताते हैं कि बच्चों को उच्च व संस्कार युक्त शिक्षा दिलाने के लिए वह हमेशा तत्पर रहे। यहां तक कि बच्चों की शिक्षा के लिए कर्ज भी लिया। रांची से धुर्वा ऑटो चलाकर अपने व बच्चों का जीविकोपार्जन किया। बेटों की पढ़ाई में कोई बाधा न हो, इसका हमेशा ख्याल रखा। अशोक बताते हैं कि उनके तीनों बेटों ने धुर्वा स्थित सरस्वती शिशु मंदिर से मैट्रिक की पढ़ाई की है। उनके एक पुत्र आर्किटेक्ट हैं। वहीं,एक पुत्र निजी क्षेत्र के कंपनी में कार्यरत हैं। तीसरा पुत्र व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त कर रहा है।
अशोक कहते हैं कि मेहनत,लगन और ईमानदारी के बलबूते हर मुकाम हासिल किया जा सकता है।
Report By Naval Kishore Singh (Ranchi, Jharkhand)
By Madhu Sinha
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