अटका नरसंहार के आश्रितों को 23 साल बाद भी नहीं मिली नौकरी।

 अटका नरसंहार के आश्रितों को 23 साल बाद भी नहीं मिली नौकरी।


बगोदर, अटका नरसंहार की घटना को हुए 23 साल बीत गए । लेकिन इस नरसंहार की घटना को आज भी लोग भूल नहीं पाएं।नरसंहार की इस घटना को याद कर के लोग अभी भी सहम जाते हैं। इसमें मारे गए लोगों के परिजन हीं नहीं, बल्कि उस समय के ह्रदयविदारक घटना को देखने वालों की रूह आज भी कांप जाती है। गोलियों की बौछार से मारे गए दस लोगों का खुन से लथपथ शरीर और फिर लोगों के चित्कार आज भी विचलित कर देता है। 



इस घटना में मारे गए लोगों के परिजनों का का कहना है कि वे इस घटना को ताउम्र नहीं भूला पायेंगे। उनका कहना है कि इस घटना से उत्पन्न परिस्थितियों से निपटने के लिए तत्कालीन सरकार ने मरहम लगाने के लिए कुछ घोषणाएं की थी। मगर वह घोषणाएं आज भी अधूरी है। नरसंहार की घटना के बाद एक ओर जहां अपनों को खोने का गम सताती रही, वहीं दूसरी तरफ सरकार के नौकरी देने की घोषणा का आज तक पूरा नहीं होने का भी मलाल है। पीड़ित परिजनों ने अब नौकरी मिलने की उम्मीद को भी अपने दिमाग से निकाल दिया है। हालांकि नौकरी नहीं मिलने का टीस उनके मन में अभी भी है और इसके लिए तत्कालीन बिहार सरकार से लेकर वर्तमान हेमंत सरकार से  भी नाराजगी है।


यह  नरसंहार 7 जुलाई को 1998 को हुई थी।

एकीकृत बिहार के समय 7 जुलाई 1998 को अटका नरसंहार की घटना हुई थी। किसी मामले को लेकर पंचायत करने बैठे निहत्थे ग्रामीणों पर पुलिस वर्दीधारी नक्सलियों ने अचानक ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार कर दी थी। इससे तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल सहित दस लोगों की मौत हो गई थी।


By Madhu Sinha

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