RANCHI, JHARKHAND#*राम के आदर्शों को याद दिलाता नाटक "मैं राम बनना चाहता हूं"* *JFTA मिनी सभागार में नाटक "मैं राम बनना चाहता हूं का हुए मंचन"*

RANCHI, JHARKHAND#*राम के आदर्शों को याद दिलाता नाटक "मैं राम बनना चाहता हूं"*

*JFTA मिनी सभागार में नाटक "मैं राम बनना चाहता हूं का हुए मंचन"*

कडरू स्थित झारखंड फिल्म एंड थियेटर एकेडमी के मिनी सभागार में रविवार की शाम पूर्ण कालिक हिंदी नाटक "मैं राम बनना चाहता हूं" का मंचन किया गया, जिसका लेखन और निर्देशन किया है राजीव सिन्हा ने।

16 किरदारों वाले इस नाटक में रामलीला के माध्यम से रामायण के किरदारों की तुलना कलयुग के किरदारों से की गई है।

नाटक में अभिनय कर रहे कलाकारों में शामिल थे ललित साव, श्रुति जयसवाल, आयुष शर्मा, सर्वेश करण, सामर्थ झा, शुभम सिन्हा, अभिषेक राय, मन्नु कुमार, अपराजिता रॉय, चिरंजीवी कुमार, सौरभ मेहता और मनवीर सिंह।

कहानी: रामपुर का एक युवक मुरली जो पिछले चार सालों से रामलीला में दरबारी का रॉल निभा रहा है, लेकिन उसका लक्ष्य है राम बनना, इस प्रयास में जब उसे दूसरे मंडली में मौका मिलता है, तो उसे पहले माता सीता के किरदार में खुद को सिद्ध करना पड़ता है। नाटक के अंत में सभी अग्निपरीक्षा से गुजर कर जब मुरली को राम बनने का मौका मिल जाता है तो एम् एल ए का बेटा गोलू जो रावण के किरदार में  होता है, और पूर्व एम् एल ए का बेटा परपेंडी कूलर पांडेय के बीच की निजी दुश्मनी खड़ी हो जाती है, और मुरली दरकिनार हो जाता है। ऐसे में मुरली पूरे समाज पर बरसता है और कहता है, 

"मुरली: बंद करो....बंद करो ये झूठा द्वन्द ....अरे हमने क्या गलती कर दी....जो हमने अपना सपना पूरा करना चाहा...क्या गलती हो गई हमसे जो हम राम बनना चाहते थे.....क्या इतना मुश्किल है आज की तारिख में भगवान् राम  का रूप धरना....क्यों आज के रावण के आगे राम की एक नहीं चलती....क्यों आज का लक्ष्मण भ्रातृ प्रेम को भूल कर इतना स्वार्थी हो गया है....

क्यों आज की सीता पैसों के पीछे भाग रही है....क्यों आज का हनुमान स्वामी भक्ति को छोड़ कर इतना दल बदलू हो गया है....क्यों आज का बिभीषन सवभाव से मौका परस्त हो गया है.......क्यों राजनितिक द्वन्द में फंसे है आज राम....क्या कभी किसी ने भगवन राम के आदर्शों को समझने की कोशिश की....जिसको देखो राम के नाम पर ही अपनी रोटियां सेंक रहा है....और हम...हम जैसे नौजवान...समझ ही नहीं पा रहे की आखिर ये हो क्या रहा है है...सपने क्या देखते हैं...हो क्या जाता है...बनना क्या चाहते हैं बन  क्या जाते हैं....हमसे कहाँ कोई पूछता है...की हम क्या बनना चाहते हैं....

चाहे हम जो कुछ भी बनना चाहते हों पर आज तो ये तय हो गया  की कितना मुश्किल है आज राम बनना, भगवन राम का रूप धरना .....देख रही हो न शालू तुम की आज  का राम कितना बेबस और लाचार है...माफ़ कर दो शालू, हमें माफ़ कर दीजिये बाबू जी हम गलत थे ...आप सही थे.....अब नहीं बनना हमको राम....नहीं देखना हमे इतना बेबस और लाचार सपना... क्योंकि केवल धार्मिक नाम रख लेने से केवल कुछ नहीं होता....उनके आदर्शों पर भी चलना पड़ता है......"



By Madhu Sinha

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