GORAKHPUR,UP#सूर्याेपासना की परंपरा प्राचीन, प्रकृति व संस्कृति में छठ। - सूर्यषष्ठी आस्था व विश्वास पर्व, लोकपर्व पर अनुपम छटा। -त्रेतायुग में भगवान श्रीराम व द्वापर में माता कुंती ने की थी पूजा।

 GORAKHPUR,UP#सूर्याेपासना की परंपरा प्राचीन, प्रकृति व संस्कृति में छठ। 

- सूर्यषष्ठी आस्था व विश्वास पर्व, लोकपर्व पर अनुपम छटा। 

-त्रेतायुग में भगवान श्रीराम व द्वापर में माता कुंती ने की थी पूजा। 

 गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।

सूर्योपासना सदियों से चला आ रहा है। लोकपर्व छठ पर आस्था, विश्वास व सहयोग का अनुपम संगम स्थापित हुआ। घर से लेकर पूजा स्थल तक मनोहारी दृश्य कायम रहा है। घर-परिवार, सगे-संबंधियों में व्रती महिलाओं का ख्याल रखा गया। बच्चों के साथ बड़े-बुर्जुग भी घाटों पर पहुंचकर मां का आशीर्वाद प्राप्त किया।

सूर्यषष्ठी पूर्वांचल के साथ अनेक स्थानों का लोकप्रिय पर्व बना है। अटूट आस्था से किया जाने वाला पर्व में मनोकामनाओं की पूर्ति से विश्वास की अनुपम परंपरा कायम रही। महापर्व की कई कथाएं प्रचलित है। लोक कल्याण एवं फल प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य के उपासना की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। सतयुग में पूजन का जहां वर्णन मिलता है, वहीं त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने माता सीता के साथ व्रत रखकर पूजन किया था।  द्वापर युग के महाभारत काल में माता कुंती ने सूर्यदेव का पूजन किया उसी समय पुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की आराधना किया। ब्रहमवैर्वत्व पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने मृत पुत्र को जीवित करने के लिए व्रत किया था। आदि शंकराचार्य ने भी सूर्य पूजा के लिए प्रेरित किया था। शाक्य द्विपी ब्राह्मणों को सूर्य पूजा के विशेषज्ञ होने के कारण राजाओं ने आमंत्रित किया। ऋग्वेद में पूजा का महात्म्य मिलता है।

छठ देवी प्रकृति देवियों का प्रधान अंश एवं भगवान सूर्य देव की बहन हैं। माता दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री ये पांच देवियां संपूर्ण प्रकृति कहलाती हैं। इन्हीं के प्रधान अंश को माता देवसेना कहते हैं। प्रकृति देवी का छठवां अंश होने के कारण माता देवसेना को षष्ठी माता के नाम से जाना जाता है। मां संसार के सभी संतानों की जननी और रक्षक हैं। उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। भगवान श्रीराम और माता सीता ने रावण वध के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की और अगले दिन यानी सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की और आशीर्वाद प्राप्त किया। एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ की शुरूआत महाभारत काल में हुई। महाभारत काल में ही द्रौपदी के भी सूर्य उपासना करने का उल्लेख है जो अपने परिजनों के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना के लिए नियमित रूप से यह पूजा करती थी। प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने विवाह से कर्ण के रूप में पुत्र दिया था। सूर्यपुत्र कर्ण अंग प्रदेश यानी वर्तमान बिहार के भागलपुर के राजा थे। जो पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे और परम योद्धा बने थे। महाभारत काल में ही द्रौपदी ने राजपाट की पुन: प्राप्ति व पुत्र कामना के लिए आराधना की थी। इसे लेकर छठ में आज भी अर्घ्य देने की परंपरा है। आचार्य दयाशंकर पांडेय के अनुसार भगवान सूर्य के जन्म षष्ठी को हुआ था। षष्ठी को ही गायत्री मंत्र का विस्तार हुआ माना जाती है।



Report By Seraj Ahmad Quraishi (Gorakhpur, Uttar Pradesh)

By Madhu Sinha 

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